और
सीने में दूध
उसकी जिंदगी से मिलती
साँस
गोद में बसती है नींद
झरनों की लोरी
हवाओं की थपकी
हमें छुपाकर जिन्दा करती
माँ सी धरती .
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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