Sunday, October 31, 2010

माँ सी धरती

एक नदी उसके गर्भ में
और
सीने में दूध
उसकी जिंदगी से मिलती
साँस
गोद में बसती है नींद
झरनों की लोरी
हवाओं की थपकी
हमें छुपाकर जिन्दा करती
माँ सी धरती .

No comments:

कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

  कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...