मेरे साथ रहती है
मेरी प्रेयसी मेरी कविता
हाथों में लिए
ढाढ़स के अनगिणत शब्द
और
सुख के क्षण में
बिखरती रहती है
मेरी प्रेयसी मेरी कविता
गंध और स्पर्श के सहारे
जब मैं कटता हूँ दुनिया से
एकमात्र
मेरी कविता मुझसे जुड़ती है
अनुभूति की बाहें फैलाकर
और
जब मैं रमता हूँ दुनिया में
मेरी कविता ही बनती है
माध्यम
अभिव्यक्ति की
शोक में हर्ष में
अपकर्ष और उत्कर्ष में
रण और वन में
हरपल मेरे मन में
विचरती रहती है
मेरी प्रेयसी मेरी कविता
मैं समाता हूँ
अपनी कविता की इयत्ता में
और यही
दुनिया में अकेली
मेरी परवाह करती है
मैं देता हूँ इसे
रूप
यह देती है मुझे
परिभाषा
दुनिया के सारे
अर्थ, संबंध, रिश्ते, भाव, राग
उस मुकाम पर
पहुँचने का साधन मात्र है
जहाँ
मैं और मेरी प्रेयसी
निर्बाध मिल सके
मेरी प्रेयसी कविता
मेरी अंतिम खोज है .
4 comments:
मैं और मेरी प्रेयसी
निर्बाध मिल सके
मेरी प्रेयसी कविता
मेरी अंतिम खोज है .
सृजन का एक कारण यह भी है सुंदर रचना बधाई
बहुत सुंदर रचना है श्री मान, मुझे भी कविताये लिखने का शोंक है, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
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aatmsukh se bhare khyaal ... bahut hi badhiyaa
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