Sunday, October 10, 2010

तरक्की पसंद कविता .

तरक्की पसंद कविता
केवल
राजा को ही
क्यों
घेरे ?
क्या
कुछ कम गलती है
मेरे
तेरे ?
राजा एक हो सकता है
या
सात हजार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है ।
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है ।
राजा का उतरन पहनने वाला
कम नहीं है ।
बाहर
राजा जिसे अखरता है ।
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है ?
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर छीन लाये
रोटी को
खुद डकार जाता है
मगर
वादें लेनिन की करता है ।
कसमें माकी खाता है
- ॐ राजपूत
३१ -८ - २०१०

No comments:

कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

  कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...