Sunday, October 31, 2010
माँ की बाँहों में
माँ सी धरती
Friday, October 29, 2010
फिर तुम्हारी याद दस्तक हुई सी जाती है
फिर तुम्हारी याद
दस्तक हुई सी जाती है
और
सिरहाने में सोये
किताब के पन्ने
जी उठते हैं
मेरे जीवन में
घटी
जिन घटनाओ के नीचे
लाल स्याही से
तुमने
एक लकीर डाली थी
महत्वपूर्ण हर वह वाकया
इसी किताब में तो रहता है
जिसके हर पन्ने पर
चाँद
अपनी चाँदनी बिखेरता रहता है
फूल
खुद ही आकर
जहाँ खिल उठते हैं
बहार
पूरे बरस बनी रहती है
तुम्हारी याद
इसी कारण
अपनी छुट्टियाँ मनाती है
इस किताब को जगाकर।
Wednesday, October 27, 2010
कल के चूल्हे के लिए.
कल के चूल्हे के लिए.
तुम शहर में वापस आ गयी हो . (once more)
Monday, October 25, 2010
संजीवनी है तुम्हारी आहट
जिससे जिन्दा होती है मेरी वैयक्तिकता
मै जो करते-करते कार्य
हो जाता हूँ यंत्र,
तब
सामान्य होने का सुख बटोरता हूँ
जब
तुम देती हो
एक छोटी आवाज़
झील के उस पार से
इधर
कमरे में ताज़ी हवा घुस आती है
पुस्तकों में सिमटे शब्द
बिस्तर पर उतर आते हैं
और मैं
करीने से पलटता हूँ
फिर से
अपनी जिंदगी की किताब को
दुनिया की असंख्य संबोधनों में से
यह एक काफी है
जो मुझे मरने नहीं देगी
खास मेरे लिए
जब एक स्वर तैरती है
तुम्हारी
मंदिर में बजती है भोर की घंटी
नदी में उठती है कुंवारी लहर
हवा सोये फूलों को जगा जाती है
और मैं
फिर से गढ़ता हूँ एक परिभाषा
अपने लिए
क्योंकि
जिंदगी ने कम ही दिए हैं
ऐसे मौके
जब
मेरी संवेदना मेरे शरीर को महसूस करती है .
Saturday, October 23, 2010
जो धुँआ उठ रहा है
Friday, October 22, 2010
मुफलिसी की नवाबी
यदि आप यह दावा करते हैं
Tuesday, October 19, 2010
तुम शहर में वापस आ गयी हो .
कुछ शब्द
तुम्हे सौंपा था
मैंनेअपना समझ कर
और
तुम्हारे हाथ से
वे छिटक गए
क्योंकि
उनका अर्थ लगाना आसान था
पगडण्डी
घर मेरा बसा है
बस्ती से दूर किसी के पास
जिसके चारो ओर पगडण्डी है
यादों की
जिससे होकर गुजरना
जिंदगी को कई बार जीना है
Friday, October 15, 2010
उम्मीद की लत
Thursday, October 14, 2010
कविता की रेजगारी
मेरे हाथ से छूटते शब्द
Sunday, October 10, 2010
तरक्की पसंद कविता .
केवल
कुछ कम गलती है
मेरे
तेरे ?
राजा एक हो सकता है
या
सात हजार सात सौ सात
पर
परजा की बात
तो
करोड़ों में जाती है
फिर भी
नयी रौशनी नहीं आती है ।
राजा के
सेवक
लठैत
मुनीम
गुमाश्ता
पंडित
हरकारा
में हम नहीं है ।
राजा का उतरन पहनने वाला
कम नहीं है ।
बाहर
राजा जिसे अखरता है ।
घर में
राजा की नक़ल नहीं करता है ?
बाहर
अराजकता
लूट
अन्याय
का शोर है
पर
सच पूछो तो
हमारे अन्दर भी एक चोर है
जो
भूख के नाम पर छीन लाये
रोटी को
खुद डकार जाता है
मगर
वादें लेनिन की करता है ।
कसमें माओ की खाता है ।
३१ -८ - २०१०
Saturday, October 9, 2010
bihar chunaw
बीजेपी के साथ किया क्या देखो भैया ठाकुर ने .
पुत्र मोह में छोड़ दिया अनुशासन और नैतिकता ,
लोकतंत्र की नयी राह पर लोभ मोह ही टिकता .
कहे बिहारी बेबस होके आपस की दूरी पाटो,
बीबी बच्चे बहु बेटे में पार्टी की टिकट बाँटो
bihar chunaw
बीजेपी के साथ किया क्या देखो भैया ठाकुर ने .
पुत्र मोह में छोड़ दिया अनुशासन और नैतिकता ,
लोकतंत्र की नयी राह पर लोभ मोह ही टिकता .
कहे बिहारी बेबस होके आपस की दूरी पाटो,
बीबी बच्चे बहु बेटे में पार्टी की टिकट बाँटो
Wednesday, October 6, 2010
औरत
औरत
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वह औरत
आकाश और पृथ्वी के बीच
कब से कपड़े पछीट रही है
पछीट रही है शताब्दियों से
धूप के तार पर सुखा रही है
वह औरत आकाश और धूप और हवा से
वंचित घुप्प गुफा में
कितना आटा गूँध रही है?
गूँध रही है मनों सेर आटा
असंख्य रोटियाँ
सूरज की पीठ पर पका रही है
एक औरत
दिशाओं के सूप में खेतों को
फटक रही है
एक औरत
वक्त की नदी में
दोपहर के पत्थर से
शताब्दियाँ हो गई,
एड़ी घिस रही है
एक औरत अनन्त पृथ्वी को
अपने स्तनों में समेटे
दूध के झरने बहा रही है
एक औरत अपने सिर पर
घास का गट्ठर रखे
कब से धरती को
नापती ही जा रही है
एक औरत अंधेरे में
खर्राटे भरते हुए आदमी के पास
निर्वसन जागती
शताब्दियों से सोई है
एक औरत का धड़
भीड़ में भटक रहा है
उसके हाथ अपना चेहरा ढूँढ रहे हैं
उसके पाँव
जाने कब से
सबसे अपना पता पूछ रहे हैं।
- चन्द्रकान्त देवताले
कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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एक शब्द है बुढ़िया जो आदरसूचक अर्थ नहीं रखता मगर अवस्थाबोध जरुर कराता है जिसे भिखमंगे जैसी दया की दरकार होती है मेरी दादी वही हो गयी ...
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`सुबह की अलसाई नींद बिस्तर से उतरती है डगमगाते पैरों की मानिंद लेती है टेक आँख खुलने की सच्चाई आईने पर पसर जाती है और रौशनदान से सूरज की पे...
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इतिहासलेखन का स्वरूप, इतिहासलेखन का उद्देश्य और इतिहासलेखन में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों का सीधा संबंध समकालीन राजनीति के साथ होता ह...