Tuesday, June 8, 2010
A JOURNEY TO KHAGARIA
THIS WAS MY SECOND VISIT TO KHAGARIA . I WENT TO MY BROTHER'S HOME IN MY SCHOOL VACATION FOR SUMMER. MY NUMPTY BROTHER BHOLU ALWAYS IRRITATES ME AS IT SEEMS THAT HE WILL BECOME A DONKEY IN HIS NEXT LIFE. WE ATE DELICIOUS DISHES TO OUR HEART'S CONTENT. AFTER 5 DAYS OF MY RELAXABLE & MASTI BHARI LIFE I M NOW GOING TO MY NANI GHAR WITH MY MAMA AND BROTHER AS WELL AS SISTER AND MOTHER.
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कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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कविता में बचे रहने के लिए मुझे खोजना पड़ता है गेहूं का बारहमासी पौधा। जिसमें पूरे परिवार की भूख निर्भर है। इससे बनी रोटी सिर्फ पेट की नही...
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दुःख की घड़ी में मेरे साथ रहती है मेरी प्रेयसी मेरी कविता हाथों में लिए ढाढ़स के अनगिणत शब्द और सुख के क्षण में बिखरती रहती है मेरी प्रेयसी...
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