अब तो छुट्टी ख़त्म हो गयी है और मैं अपने हॉस्टल में वापस आ गया हूँ । कल से पहले तो आनेवाले १३ तारीख को होनेवाले हिस्टरी सेमिनार के लिए अपना लेख तैयार करूँगा जो वैशाली के इतिहास से सम्बंधित होगा ।
Wednesday, June 9, 2010
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कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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एक शब्द है बुढ़िया जो आदरसूचक अर्थ नहीं रखता मगर अवस्थाबोध जरुर कराता है जिसे भिखमंगे जैसी दया की दरकार होती है मेरी दादी वही हो गयी ...
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कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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दुःख की घड़ी में मेरे साथ रहती है मेरी प्रेयसी मेरी कविता हाथों में लिए ढाढ़स के अनगिणत शब्द और सुख के क्षण में बिखरती रहती है मेरी प्रेयसी...
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