Thursday, June 10, 2010

तुम्हारा साथ, तुम्हारे करीब, तुम्हारी बातें .

जीवन के
सबसे सुन्दरतम दिनों में
तुम्हारा साथ
खिलते गुलाब पर
कविता करने जितना सुखद था
तब
तुम्हारे करीब होने का
अहसास
आँगन में पसरी
जाड़े की गुनगुनाती धूप
की तरह आरामदायक थी
और
सन्दर्भ के
किसी छोर पर बैठे
मीलों आ ठिठकती
तुम्हारी
बात से जोड़ती बात
सुबह की चाय पर चाय
की तरह प्यारी थी
तभी तो
अधिकारपूर्वक
तुम्हारा सौंपा हर विश्वास
मेरे उनदिनों में
मुफलिसी की नवाबी थी ।
- ॐ राजपूत
०२-०३-२००१

और तुम भी .

कभी ऐसा भी होता है
कभी ऐसा ही होता है
और
एक रौशनी चली जाती है
bina kisi ko prakashit kiye

और तुम भी .

कभी ऐसा भी होता है
कभी ऐसा ही होता है
और
एक रौशनी चली जाती है
बिना किसी को प्रकाशित किये
फिर
हाथ जो बने है
स्पर्श को संज्ञा प्रदान करने के लिए
अनछुए ही लौट आते है
पहलु में
कभी - कभी कोई यायावर
पूरी तैयारी के बावजूद
कहीं नहीं जाता है
और
शहर का सबसे पढ़ा - लिखा व्यक्ति
मर जाता है
किताबों को आलमारी में कैद किये
इधर
रात के प्रहरी की आवाज़
गुज़र जाती है
कानों के बिलकुल करीब से
हम जागते नहीं
फिर
पागलों की जमात में बैठा
नया पागल कहता है
अभी भी वक़्त चाहिए
अभी भी ओ खुदा
तुम्हारी दुनिया बन ही रही है
और तुम भी ।
- ॐ राजपूत
०८-०८-03

एक कविता

एक कविता

मेरे जीवन में आई है

चलकर

जिसकी चाल

ईश्वर की प्रार्थना की तरह

पवित्र है

एक कविता

जिसे मैंने रखा है

सहेज कर

कभी न मुरझाने वाले फूलों के साथ

एक कविता

जिन्दा रहती है

हमेशा

मेरे बगल में

और

मुझसे बतियाती है

तो

समय थम जाता है

एक कविता

जिसे मैं खोज़ता था

या

एक कविता

जो

मुझे खोजती चली आई

वो कविता

तुम्हारी अभिव्यन्ज़क है

जो

मेरे सिरहाने उतर गई है 

- ॐ राजपूत २५-०३-०१

एक कविता

एक कविता
मेरे जीवन में आई है
चलकर
जिसकी चाल
ईश्वर की प्रार्थना की तरह
पवित्र है
एक कविता
जिसे मैंने रखा है
सहेज कर
कभी मुरझाने वाले
फूलों के साथ
एक कविता
जिंदा रहती है हमेशा
मेरे बगल मैं
और
मुझसे बतियाती है
तो
समय थम जाता है


एक कविता

एक कविता
मेरे जीवन में आई है
चलकर
जिसकी चाल
ईश्वर की प्रार्थना की तरह
पवित्र है
एक कविता
जिसे मैंने रखा है
सहेज कर
कभी मुरझाने वाले
फूलों के साथ


आदमी के पक्ष का ईश्वर कहाँ है ?

क्यों नहीं जीवन को मिलता है
एक कोना प्यार
जिंदगी
अपने पूरे हिस्से के साथ
हाथ नहीं आती है क्यों
दुनिया में आने पर
जीने की बेबसी क्यों
कौन ले जाता है चुराकर
हमारे हिस्से का रंगीन फूल
आखिर
इससे धरती पर
किसी का क्या सधता है
अगर यह शैतान है
तो
आदमी के पक्ष का ईश्वर कहाँ है ?

Wednesday, June 9, 2010

सेमिनार

अब तो छुट्टी ख़त्म हो गयी है और मैं अपने हॉस्टल में वापस आ गया हूँ । कल से पहले तो आनेवाले १३ तारीख को होनेवाले हिस्टरी सेमिनार के लिए अपना लेख तैयार करूँगा जो वैशाली के इतिहास से सम्बंधित होगा ।

Tuesday, June 8, 2010

ABHISHEK MOLU N BHOLU K LIYE

BHOLU KA MATBAL 20 RUPAYE ME 3 PAAN MOLU KA MATBAL INTERNET PAR PURA DHYAN ABHISHEK KA MATBAL BHAGE CHHURA KAR APNA JAAN

A JOURNEY TO KHAGARIA

THIS WAS MY SECOND VISIT TO KHAGARIA . I WENT TO MY BROTHER'S HOME IN MY SCHOOL VACATION FOR SUMMER. MY NUMPTY BROTHER BHOLU ALWAYS IRRITATES ME AS IT SEEMS THAT HE WILL BECOME A DONKEY IN HIS NEXT LIFE. WE ATE DELICIOUS DISHES TO OUR HEART'S CONTENT. AFTER 5 DAYS OF MY RELAXABLE & MASTI BHARI LIFE I M NOW GOING TO MY NANI GHAR WITH MY MAMA AND BROTHER AS WELL AS SISTER AND MOTHER.

इतिहास राजनीति का युद्ध क्षेत्र है।

  इतिहासलेखन का स्वरूप, इतिहासलेखन का उद्देश्य और इतिहासलेखन में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों का सीधा संबंध समकालीन राजनीति के साथ होता ह...