कुछ मत देखो तो साबुत बच पाओगे।
फेसबुक ट्विटर व्हाट्सएप्प से दूर रहो
तो
जीवन का ककहरा याद रहेगा।
जो जीवट नहीं हैं
जिनके पांव अंगद के नहीं हैं।
उन्हें सूखे पत्ते की तरह
इस
इधर-उधर
उड़ाता रहेगा
नये जमाने का 'संजय'।
नारद की तरह
दोनों की बात
कुछ अपनी भी लगा के कहेगा।
फिर कहीं की तस्वीर कहीं की
कहानी सुनाएगी।
फिर कही की खबर कहीं और से आएगी।
घर के अंदर से मुहल्ले में हलचल हो सकती है
और मुहल्ले की साजिश से किसी का
घर उजड़ सकता है।
फिर अपनी माँ से गौ माता ज्यादा प्यारी
हो जाती है।
और वंदे मातरम बोलने से ईमान
बिगड़ जाता है।
फिर रंगों का बंटवारा कर
झंडों को उठाया जाता है।
नीला हरा केसरिया
से जीवन का फर्क उभरता है।
जिसने भीड़ को ठुकराया
भीड़ के हाथों मरता है।
Tuesday, June 11, 2019
नये जमाने का 'संजय
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कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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