पूरी गर्मजोशी के साथ
मैं उस क्षण
भी
करूँगा तुम्हारा स्वागत
जब
शरीर मुर्झा चुकी होगी
आँखों ने बोलना
और
मस्तिष्क ने समझाना
बंद कर दिया होगा
एक-एक कर ढेरों
कलैंडर
उतर चुके होंगे दीवार से .
मैं दीवार पर
एक नया कलैंडर खिलाऊंगा
और फूलदान से
बासी फूलों को निकाल
उसमें
ताजे फूलों के साथ
शेष बची जिंदगी को भी
सजा दूंगा.
समय ठहरा रहेगा तब तक.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
-
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
-
दुःख की घड़ी में मेरे साथ रहती है मेरी प्रेयसी मेरी कविता हाथों में लिए ढाढ़स के अनगिणत शब्द और सुख के क्षण में बिखरती रहती है मेरी प्रेयसी...
-
एक शब्द है बुढ़िया जो आदरसूचक अर्थ नहीं रखता मगर अवस्थाबोध जरुर कराता है जिसे भिखमंगे जैसी दया की दरकार होती है मेरी दादी वही हो गयी ...
1 comment:
बहुत अच्छी प्रस्तुति
Post a Comment