Thursday, February 18, 2021

वाह वाह

आपका स्तर क्या है
इससे पहले कि 
कविता का स्तर देखा जाए
कविता के शील,गुण, कौमार्य का परीक्षण हो
इससे पहले आप बता दें
जनाब
'आर यू वर्जिन??'
हमारी बहकी हुई कविता तो 
अरसा पहले हाथों से छूटकर
आमलोगों की बस्ती में चली गई
और
अपने ही मिजाज में-
बोलती है।
चिल्लाती है।
गुर्राती है।
रोती है।
मगर
कभी गाती नहीं है-
कोई ठुमरी कोई भजन।
कमबख्त मुँहजली ने
कभी कमाने का मौका नहीं दिया।
कितने अरमानों से इसे लिखा था
कि
कम से कम
मुँहमाँगी कीमत मिलेगी
मगर 
कमबख्त कुछ एक चुटकुले ने
लफ्जों की लफ्फाजी का मेकअप
किए
बूढ़े थुलथुल साहित्यिक जमींदार का
हवस पूरा कर दिया।
और
शातिर बापनुमा उसका काना दलाल
फिर से 
वाह-वाह हो गया।

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