Sunday, December 20, 2020

मौत तो कविता की भी होती है

तमीजदार भाषा
सेवक की भाषा
आपकी जगह लेट जाती है
तानाशाहों के बिस्तर पर
फिर पैदा होती है
एक कवि की कविता
एक लेखन की रचना
महाकाव्य
इतिहास
जीवनगाथा
पवित्र किताब
अंतिम भी
और कुछ पात्र 
महान चरित्र बन जाते है.
और
गुलामों को 
एक आदर्श के रूप में 
हमेशा याद हो जाता है
मर्यादा बोध,कर्म सिद्धांत से लेकर
आसमानी संदेश तक
उसी तरह उगते हैं
जिस तरह 
पैदा हुआ करता था
एक दासी की कोख से
कुलीन वंश का अंश.
हम आज में भटकते हैं
और खो जाते हैं
अतीत के अंधेरों में
हाथी किसी को कान नज़र आता है
किसी को पांव
और फिर हमारे अंदर का बाणभट्ट
एक हर्ष को खोज लेता है
मुद्दा ये नहीं है कि
झूठ बोला जाता है
लिखा जाता है
दरअसल हमें तैयार किया जाता है
हर युग में
बिना सोचे
बिना बोले
बिना देखे
मानने 
मानने 
मानने के लिए
हर विचारक किसी न किसी की हत्या करता है
हर क्रांति  से कुछ आजादी छिनती है
हर पुरस्कार वफादारी का इनाम होता है
हर चैरिटी का एक मिशन होता है
हर सुधारक कुछ बिगाड़ के चला जाता है
हमारे हिस्से
जो होती है
कुछ देर की सांस
कुछ पल की रौशनी
उसे
थोड़ी सी नमी में बो के
अपने शक्ल से मिलता-जुलता
शक्ल उगा कर
धरती को जगाए रखते हैं
एक वक़्त ऐसा भी आता है
जब सबकुछ व्यर्थ प्रतीत होता है
सब बीमार नजर आते हैं
सारे फूल कुम्हलाए
सारे रिश्तें बिखरे नज़र आते हैं
महामानव भी
आम आदमी की तरह चला जाता है
भले ही हम कितना भी 
राष्ट्रीय शोक मना लें.
तुम मानो या न मानो
मौत तो कविता की भी होती है।

Tuesday, December 15, 2020

समय ठहरा रहेगा तबतक

पूरी गर्मजोशी के साथ
मैं उस क्षण
भी
करूँगा तुम्हारा स्वागत
जब
शरीर मुर्झा चुका होगा।
आँखों ने बोलना
और
मस्तिष्क ने समझाना
बंद कर दिया होगा।
एक-एक कर ढेरों
कैलेंडर
उतर चुके होंगे दीवार से .
मैं दीवार पर
एक नया कैलेंडर खिलाऊंगा।
और फूलदान से
रोज की भांति
बासी फूलों को निकाल
उसमें
ताजे फूलों के साथ
शेष बची जिंदगी को भी
तुम्हारे लिए
सजा दूंगा.
समय ठहरा रहेगा तब तक.

Sunday, December 13, 2020

आदरविहीन संबोधन है-

बुढ़िया

रिश्तों की दुनिया में अवकाशप्राप्त
मगर
प्यार के पेंसन के लिए भटकती 
पभिखमंगे सी

दया की दरकार करती

समझो 

मेरी दादी वही हो गयी है

बुढ़िया

माँ की नज़रों में

वह काम नहीं कर सकती है

इसलिए

पापा कहते है

मुफ्तखोर

फ्लैट के उस कोने में

जहाँ

मै टॉमी को बांधता था

बिस्तर लगा है

बुढ़िया

यानि मेरी दादी का

माँ की जो साड़ी

पहले कामवाली बाई ले जाती थी

अब पहनती है

बुढ़िया

यानी मेरी दादी

कल जब सिन्हा आंटी आयी थी

तो

माँ ने कहा था

उनके गांव की है

बुढ़िया

वह हमेशा राम - राम जपती रहती है

टीवी देखते समय

माँ चीखती है

पागल बुढ़िया

चुप रहो

मै उससे मिल नहीं सकता

वह बीमार है

स्कूल से लौटने पर

उसे दूर से देख सकता हूँ

उसके हाथ कांपते रहते है

वह दिन में कई बार

अपनी गठरी खोलती है

टटोलती है

मानों कुछ

खोज रही हो

और फिर बंद कर देती है

माँ कहती है

काफ़ी भद्दी और लालची है बुढ़िया

एकदम देहाती गंवार है

मगर

बुढ़िया मेरे लिए आश्चर्य है

जब मुझे पता लगा

कि

वह मेरे पापा की माँ है

तो

मुझे विश्वास नहीं हुआ

क्या माँ ऐसी होती है ?

एक दिन

उसने मुझे

पास बुलाकर एक मिठाई दी

और कहा -" खा "

मै खाने को ही था

कि

माँ ने आकर

मेरे हाथ झटक दिए

कहा -

जहर है मत खा

फिर बुढ़िया से कहा

इस मिठाई की तरह

तुम्हारा दिमाग भी सड़ गया है

वह रोज नहीं नहा पाती

वह बदबू देती है

उसके बर्तन अलग हैं

महाराज उसके लिए

अलग से खाना बनाता है

बुढ़िया यानी

मेरी दादी से

कोई बात नहीं करता

सिवाय उस महरी के

जो झाड़ू लगाने आती है

फिर भी

वह बड़बड़ाती रहती है

कभी-कभी

वह रोने लगती है

जबकि

उसे कोई मारता नहीं है

माँ कहती है

नाटक

मैंने जब माँ से पूछा -

बुढ़िया

यहाँ क्यूँ आई है

तो

माँ ने हँसते हुए कहा -

मरने के लिए!

इतिहास राजनीति का युद्ध क्षेत्र है।

  इतिहासलेखन का स्वरूप, इतिहासलेखन का उद्देश्य और इतिहासलेखन में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों का सीधा संबंध समकालीन राजनीति के साथ होता ह...