Friday, July 31, 2020

बदतमीज़ लड़की (भाया अररिया)

बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
किस तरह पेश आना है
अजनबियों के सामने आ
बात नहीं करनी है
कब बोलनी है
और
कितनी ऊंची आवाज में बोलनी है
नहीं बताया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
नज़र झुकी होनी चाहिए
ख्वाहिशें रुकी होनी चाहिए
शर्म होनी चाहिए 
हया होनी चाहिए
लाज ही है तुम्हारा गहना
पता होनी चाहिए।
रोटी
कपड़ा
पढ़ाई पे 
तुम्हारा दूसरा हक़ है
पराई धन हो
बाप का घर 
गिरवी है, बंधक है।
गोल रोटी बनानी सीखनी थी
सायकिल चलानी नहीं।
सब्ज़ी में नमक का अंदाज़ा 
माँड़ पसाना
बर्तन मांजना 
ये जरूरी है तुम्हारे लिए
बात बनानी नहीं।
जमाना कितना खराब है
फिर भी अकेली घूमती हो
कभी भी ये बात
नहीं बताया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
घर से निकलो तो
छोटे भाई को साथ ले लो
देर न करो
सहेली के भी घर जाओ
तो बता के जाओ।
सर पे नहीं 
तो कम से कम
सीने पे तो दुपट्टा रखो
कितनी खराब दुनिया है
नहीं दिखाया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
कोई लड़का
तुम्हारा दोस्त कैसे हो गया
एंड्राइड मोबाईल की
तुम्हें क्या पड़ी है।
माँ ने अपनी मोबाईल दी हैं न
बात ही तो करनी है
घर वालों से।
फिर
टिक-टॉक
पे वीडियो क्यों बना लेती हो
सिलाई कढाई स्कूल में नाम 
अभी तक
नहीं लिखाया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
तुम घर की मर्यादा हो
इज्जत हो
इतना बड़ा आंगन है।
माँ है
दीदी है
बुआ है
दादी है
चाची है
छोटी बहन है।
अब और क्या चाहिए
कि दरवाजे की चौखट पे 
बार-बार आ जाती हो।
क्या कोई बात है
पूछने पे
कुछ भी नहीं बताती हो
घर मे रहने का सलीका
नहीं बताया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
गुलेल क्यों चलाती हो
पतंग क्यों उड़ाती हो
लड़कों संग खेलती क्यों हो?
झगड़ती हो तो
लड़कों जैसी
गाली क्यों देती हो।
हाथों में मेहंदी 
रचाती नहीं हो।
शादियों में गीत 
कभी गाती नहीं हो।
कभी कोई व्रत उपवास
करती नहीं हो।
औरत जात हो
फिर भी डरती नहीं हो।
गीता रामायण
सती सावित्री, अहिल्या कथा
नहीं पढ़ाया गया क्या?
बदतमीज लड़की
तुम्हें तमीज 
नहीं सिखाया गया क्या?
ऐसा भी समय था
अखबार छपता था
तो पाठक खरीदता था
और फिर
दूसरे दिन कबाड़ी वाला ले जाता था
आज
कबाड़ी वाला खरीदता है
फिर
अखबार छपता है
और
पाठकों को मुफ्त दिया जाता है।
पैसा तो
साथ के
बाल्टी
डब्बा
जार
और घड़ी का लिया जाता है।
अखबार से केवल
कूपन सहेजा जाता है।

पगडंडी

वे तो बस नियमित चला करते रहे
उन्हें पता भी नहीं था 
कि 
उनके चलने से भी निशान बनते हैं
छोटी सी पगडंडी है 
इसे कुछ एक से जाने पहचाने लोगों ने 
आदतन नंगे पांव चलकर बनाया है 
पहले पहल झाड़-झाड़ी दबे
तलवे तले हरी घास पीली हुई 
फिर मिट्टी की एक लकीर खिंच गई
यही लकीर पगडंडी बन गई।
क्योंकि 
नंगे पैरों में एक अपना अनुशासन था
उसकी थाप वहीं पड़ते रहे 
जहां पड़ा करते थे 
अक्सर बनती है पगडंडियां
खेतों से होकर 
इसलिए पता होता है 
चलने वालों को अपना दायरा
एक कदम भी इधर-उधर होने से
पौधों की दुनिया में आपका अतिक्रमण हो सकता है 
पगडंडियां वही बनेगी और बची रहेगी
जहां भीड़ ने अपने पैरों से कभी हमला न किया हो
 बूटों के गर्म दाग न लगे हों
और 
दनदनाती गोली की तरह 
मोटर लगी किसी दो पहिया वाहन ने
निशाना न बनाया हो
जो नहीं  जा सकते किराए की गाड़ी से 
और 
जिन्हें अपना सामान 
अपने ही सर पर उठाना होता है
उनके लिए ये पगडंडी एक सहज सवारी की तरह है 
गांव के संपन्न लोग अपनी गाड़ी से 
जितने समय में सड़क होकर सदर बाजार पहुंचते हैं 
उससे भी कम समय में 
पगडंडी की सवारी कर बाजार पहुंचा जा सकता है 
सड़क की सवारी करने वाले भी
पगडंडी का लेते रहे हैं सहारा
मगर
उनसे कभी कोई पगडंडी बन नहीं पाया है
किसी भी सरकारी दस्तावेज में 
पगडंडी का कोई जिक्र नहीं मिलता है 
और ना ही 
किसी योजना से उस पर कोई काम हुआ है 
असल में तो 
सरकारी योजना से पगडंडी बन भी नहीं सकती
या यूं कहिए कि 
सरकारी योजना से कोई राह नहीं निकल पाने के कारण ही
पगडंडी बना करती है
पगडंडी कभी सदा के लिए नहीं बनती
इसका कोई इतिहास  नहीं है 
इसका भविष्य भी नहीं है 
इसे सुरक्षित रखने का भी कोई रिवाज नहीं है 
जबकि सहूलियत के रूप में 
हमेशा से काम आता रहा है
मगर किसी बड़े महापुरुष के नाम पर 
आज तक किसी ने भी 
कभी पगडंडी का कोई नामकरण नहीं किया है 
बेनाम रह जाती है पगडंडी 
और शायद इसीलिए 
इसके योगदान का कोई मूल्यांकन नहीं करता 
जरूरत में पगडंडी ने कितना साथ दिया 
इस पर कोई नहीं सोचता 
हमारे जीवन का अहम हिस्सा रही है पगडंडी 
मगर जब हमें कोई बड़ा काला सा सड़क दिखता है 
जिसके किनारों पर उजली पट्टियां चमकती हो 
हम खुश हो जाते हैं अपनी प्रगति पर 
पगडंडी हमारे पिछड़ेपन की निशानी बनकर रह जाती है
काली सड़क ने हमेशा
रफ्तार वाली पहियों को सहारा दिया है
नंगे पैरों को हमेशा जलाया है
नंगे पैरों ने हमेशा पगडंडियों को चाहा है।
अब जबकि मजबूरी में पैदल चलना
पिछड़ेपन की निशानी है
मेरी
कविता की पगडंडी 
पगडंडी की कविता
कई लेन वाली पक्की चौड़ी सड़क  के बीच 
और कितने दिनों तक अपना अस्तित्व बचा पाएगी 
या कि बना भी पाएगी
इसपर संदेह है पर अफसोस नहीं है।

Thursday, July 30, 2020

ऐसा भी समय था
अखबार छपता था
तो पाठक खरीदता था
और फिर
दूसरे दिन कबाड़ी वाला ले जाता था
आज
कबाड़ी वाला खरीदता है
फिर
अखबार छपता है
और
पाठकों को मुफ्त दिया जाता है।
पैसा तो
साथ के
बाल्टी
डब्बा
जार
और घड़ी का लिया जाता है।
अखबार से केवल
कूपन सहेजा जाता है।

इतिहास राजनीति का युद्ध क्षेत्र है।

  इतिहासलेखन का स्वरूप, इतिहासलेखन का उद्देश्य और इतिहासलेखन में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों का सीधा संबंध समकालीन राजनीति के साथ होता ह...