Saturday, April 12, 2014

और घर के अन्दर से आती आवाज़ को .


तब भी हाँ करने की देर थी
तुम्हारे पास
जिससे होकर मेरी पूरी जिंदगी
फिसल गई
कितने गीत लिख डाले मैंने
कितनी कहानियां रच डाली
मगर मेरे मन का स्याह एकाकीपन
किसी को सुना नहीं पाया
दिखा नहीं पाया
अपनी ही लौटती आवाजों का
उत्तर देती रही मैं
इस तरह बचाती रही कल के लिए
अपनी उम्मीद
कि
कहीं तुम चले आए तो खोजोगे
एक मीठी नदी को
पीपल की छांव को
और घर के अन्दर से आती आवाज़ को .

सदी अपने सबसे बड़े राजा की पालकी सज़ा रहा होगा

क्या कहोगी तुम 
कि जबकि तुम्हारा समय 
तुम्हारे पीछे से भाग खड़ा होगा 
और 
पहाड़ से उतरती सड़क की तरह
तुम्हारी जवानी 
फिर लौट नहीं सकेगी 
कोई मछुआरा फिर जाल नहीं डाल पाएगा
धरती के उस कोने की कोख 
उगा नहीं पाएगी 
फूल शूल कुछ भी
तुम्हारे बालों की महक 
उतर जाएगी 
फिर कोई नहीं आएगा 
फिर कोई नहीं आएगा 
सदी अपने सबसे बड़े राजा की पालकी सज़ा रहा होगा 
शायद !!

कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

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