एक शब्द है
बुढ़िया
जो
आदरसूचक अर्थ नहीं रखता
मगर
अवस्थाबोध जरुर करता है
जिसे भिखमंगे जैसी दया की
दरकार होती है
मेरी दादी वही हो गयी है
बुढ़िया
माँ की नज़रों में
वह काम नहीं कर सकती है
इसलिए
पापा कहते है
मुफ्तखोर
फ्लेट के उस कोने में
जहाँ
मै टॉमी को बांधता था
बिस्तर लगा है
बुढ़िया
यानि मेरी दादी का
माँ की जो साड़ी
पहले कामवाली बाई ले जाती थी
अब पहनती है
बुढ़िया
यानी मेरी दादी
कल जब सिन्हा आंटी आयी थी
तो
माँ ने कहा था
उनके गांव की है
बुढ़िया
वह हमेशा राम - राम जपती रहती है
डेली सोप के समय
माँ चीखती है
पागल बुढ़िया
चुप रहो
मै उससे मिल नहीं सकता
वह बीमार है
स्कूल से लौटने पर
उसे दूर से देख सकता हूँ
उसके हाथ कांपते रहते है
वह दिन में कई बार
अपनी गठरी खोलती है
टटोलती है
मानों कुछ
खोज रही हो
और फिर बंद कर देती है
माँ कहती है
काफ़ी भद्दी और लालची है बुढ़िया
एकदम देहाती गंवार है
मगर
बुढ़िया मेरेलिए आश्चर्य है
जब मुझे पता लगा
कि
वह मेरे पापा की माँ है
तो
मुझे विश्वास नहीं हुआ
क्या माँ ऐसी होती है ?
एक दिन
उसने मुझे
पास बुलाकर एक मिठाई दी
और कहा -" खा "
मै खाने को ही था
कि
माँ ने आकर
मेरे हाथ झटक दिए
कहा -
जहर है मत खा
फिर बुढ़िया से कहा
इस मिठाई की तरह
तुम्हारा दिमाग भी सड़ गया है
वह रोज नहीं नहा पाती
वह बदबू देती है
उसके बर्तन अलग हैं
महाराज उसके लिए
अलग से खाना बनाता है
बुढ़िया यानी
मेरी दादी से
कोई बात नहीं करता
सिवाय उस महरी के
जो झाड़ू लगाने आती है
फिर भी
वह बड़बड़ाती रहती है
कभी-कभी
वह रोने लगती है
जबकि
उसे कोई मारता नहीं है
माँ कहती है
नाटक
मैंने जब माँ से पूछा -
बुढ़िया
यहाँ क्यूँ आई है
तो
माँ ने हँसते हुए कहा -
मरने के लिए!
- ॐ राजपूत
Sunday, September 12, 2010
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