भटकते भटकते
चाहा था अटकते
किस्मत का साथ मिलता
तो हम भी लटकते
ऑफिस के बाबु की तरह
हम भी झटकते
बातों से जीतते
चालों से पटकते
चारा भी खाते
तेल भी गटकते
जीवन भी जीते
मटकते मटकते
कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...
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