Thursday, March 3, 2011

तुम शहर में वापस आ गयी हो .


कल
कुछा अजीब - अजीब लगा था
शहर अपना
और
अपनी
बालकनी में फूल भी खिले थे
आज मैंने खुद को
काफी तरोताजा महसूस किया है
और
अपने कोट के कालर पर
एक फूल भी लगाया है
मैंने गुस्सा भी नहीं किया है
अपने नौकर पर
बिलकुल नहीं
बस कुछ पुरानी धुनों को
ताजा कर रहा हूँ
मैं आज बहुत खुश हूँ
लगता है मुझे
इससे
शायद
तुम शहर में वापस आ गयी हो .

कविता :-एक दिन मनुष्य भी हमारी अनुमति से खत्म हो जाएगा।

  कितना मुश्किल होता है किसी को न बोल पाना हम कितना जोड़ रहे हैं घटाव में। बेकार मान लिया जाता है आदतन अपने समय में और अपनी जगह पर जीना किसी ...