Saturday, November 6, 2010

समय ठहरा रहेगा तब तक

पूरी गर्मजोशी के साथ
मैं उस क्षण
भी
करूँगा तुम्हारा स्वागत
जब
शरीर मुर्झा चुकी होगी
आँखों ने बोलना
और
मस्तिष्क ने समझाना
बंद कर दिया होगा
एक-एक कर ढेरों
कलैंडर
उतर चुके होंगे दीवार से .
मैं दीवार पर
एक नया कलैंडर खिलाऊंगा
और फूलदान से
बासी फूलों को निकाल
उसमें
ताजे फूलों के साथ
शेष बची जिंदगी को भी
सजा दूंगा.
समय ठहरा रहेगा तब तक.

1 comment:

Anamikaghatak said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति

इतिहास राजनीति का युद्ध क्षेत्र है।

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